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[ उत्तर छत्तीसगढ़ हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित है। हाथियों को जंगल के भीतर ही रोकने के लिए चारा व पानी का प्रबंध भी समुचित ढंग से नहीं किया जा रहा है। जंगल के रास्ते बिजली आपूर्ति में भी हाथियों की मौजूदगी का ध्यान नहीं रखा गया। वन क्षेत्र में बढ़ता अतिक्रमण भी हाथियों के साथी बनने में बाधक रहा है। हाथियों से होने वाले जान माल के नुकसान को कम करने वर्तमान समय में सारी गतिविधियां बंद हो चुकी है। हाथियों की निगरानी हो रही है लेकिन इससे जानमाल का नुकसान कम नहीं किया जा सकता।
वन कर्मचारियों की निगरानी के दौरान भी हाथियों द्वारा मकानों को क्षतिग्रस्त करने के साथ ही इंसानों की जान भी ली जा रही है। हाथी-मानव द्वंद्व में भी दोनों ओर से नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या के लिए दीर्घकालिक योजनाएं ही कारगर हो सकती हैं। अन्यथा आने वाले दिनों में हाथी -मानव द्वंद पर नियंत्रण और मुश्किल होगा। वर्तमान समय में 350 से अधिक हाथियों का अलग-अलग समूह छत्तीसगढ़ में विचरण कर रहा है।उत्तर छत्तीसगढ़ से निकलकर हाथी आज मध्य और दक्षिण छत्तीसगढ़ तक पहुंच चुके हैं। उत्तर छत्तीसगढ़ में तो फसलों की सुरक्षा के लिए खेतों के आसपास जीआई तार का बाड़ा बनाकर उसमें करंट प्रवाहित कर सुनियोजित तरीके से जंगली हाथियों को मारने की घटनाएं भी हुई है।फसलों में कीटनाशकों के अत्यधिक छिड़काव और योजनाबद्ध तरीके से भी खाद्य सामग्री में कीटनाशक मिलाकर देने से भी हाथियों की मौत हो चुकी है।
जंगली हाथियों की मौतों का बड़ा कारण है बिजली करंट…..
छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों की मौतों का मुख्य कारण बिजली करंट ही है। पहले के वर्षों में प्रभावित क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से करंट से हाथियों को मारने की घटनाओं को छोड़ दें तो शेष घटनाएं लापरवाही का परिणाम हैं।वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या हाथी विचरण क्षेत्रों में कम ऊंचाई की बिजली लाइन हैं। स्थिति यह है कि जंगली हाथियों के सूड़ ऊपर उठते ही बिजली तार के संपर्क में भी आ रहे है। करंट लगने से तंदुरुस्त हाथी की भी तत्काल मौत हो रही है।
हाथियों को जंगल में रोकने में सफल हुए तो नुकसान कम….
0 जंगली हाथियों के आबादी क्षेत्रों में प्रवेश करने के कारण ही जानमाल का नुकसान होता है।
0हाथियों को जंगल में रोकने में सफल हुए तो नुकसान कम होगा।
0अभयारण्य , राष्ट्रीय उद्यान और बड़े क्षेत्रफल वाले वनों में हाथियों के पसंदीदा आहार के रूप में चारा की उपलब्धता।
0 जंगली हाथी विचरण व रहवास क्षेत्र में तालाब,स्टाप डेम व प्राकृतिक जलस्रोतों का विकास।
0 हाथी रहवास क्षेत्र के लिए ऐसे वनक्षेत्रों का चिन्हांकन जहां आबादी विरल हो।
0 प्राकृतिक रहवास क्षेत्र से निकलने के बाद हाथियों के विचरण वाले क्षेत्रों में भी चारा की उपलब्धता।
विज्ञानी तकनीक से निगरानी आसान….
छत्तीसगढ़ में हाथियों के व्यवहार के अध्ययन के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान से मिलकर कार्य किया जा चुका है। उसी दौरान हाथियों पर सेटेलाइट रेडियो कालरिंग पर भी काम शुरू हुआ था। दक्षिण अफ्रीका से रेडियो कालर मंगाए गए थे। कुछ दिनों तक रेडियो कालर से हाथियों की उपस्थिति की जानकारी मिलती थी। बाद में यह गतिविधि भी बंद हो चुकी है। जंगली हाथियों की निगरानी के लिए रेडियो कालर आइडी का उपयोग जरूरी है। प्रभावित किसानों,मकान मालिकों को शत-प्रतिशत समय से मुआवजा राशि तथा जंगली हाथियों के साथ साहचर्य का भाव विकसित करने जनजागरूकता कार्यक्रम से हाथियों से जानमाल की सुरक्षा पर काम किया जा सकता है।!