धरमजयगढ़ में माइंस डेवलप करना मुश्किल
धीरे-धीरे सरकार के लिए भी जमीनें अधिग्रहित करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी राह में रोड़ा अटकाती हैं। धरमजयगढ़ में प्राइवेट कंपनियों के अलावा एसईसीएल को भी खदानें आवंटित हैं। वन भूमि अधिक होने के कारण यहां विरोध भी बहुत है। मुआवजा दर पर प्रभावितों को सहमत करना भी मुस्किल है।
रायगढ़। रायगढ़ जिले में कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया था, लेकिन दो कंपनियों ने अब तक कॉस्टिंग ज्यादा होने का कारण बताकर माइंस सरेंडर कर दी। हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉरपोरेशन ने अपनी माइंस सरकार को लौटा दी। इसके बाद जीएसईसीएल की माइंस को जेपीएल ने नीलामी में पाया। कोयला खदानों की नीलामी में सरकार ने बेहद आक्रामकता दिखाई। केप्टिव के अलावा कमर्शियल यूज के लिए लगातार माइंस का आवंटन और नीलामी होती रही।इस बीच कोल इंडिया का उत्पादन भी बढ़ता गया। रायगढ़ जिले में दो कोल माइंस को कंपनियों ने सरेंडर किया। पहले हिंडाल्को इंडस्ट्रीज ने गारे पेलमा 4/5 को सरेंडर किया। यहां एक मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन हो रहा था। पीक रेटेड कैपेसिटी हासिल करने के बाद हिंडाल्को ने माइंस को सरेंडर कर दिया। अंडरग्राउंड माइंस होने के कारण तकनीकी दिक्कतें आ रही थी। कोयला खनन करना बेहद महंगा हो गया था। प्रति टन कॉस्ट ज्यादा हो रही थी।सरकार ने भी सरेंडर के बाद माइंस टर्मिनेशन ऑर्डर जारी कर दिया है। ठीक इसी तरह गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉरपोरेशन को गारे पेलमा सेक्टर 1 कोल ब्लॉक आवंटित किया गया था। कंपनी ने इस माइंस को डेवलप करने में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं दिखाया। यहां का कोयला गुजरात के पावर प्लांट ले जाया जाना था जो व्यवहारिक रूप से सही नहीं था। कंपनी ने माइंस को सरेंडर कर दिया। कोल मंत्रालय ने इस माइंस की नीलामी की जिसमें जेपीएल ने इसे प्राप्त किया। अब रायगढ़ में जेपीएल के पांच कोल ब्लॉक हैं जो एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं।