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जीरो शॉर्टेज करने समितियों ने 2200 से 2500 रुपए प्रति क्विंटल में खरीदे डीओ राइस मिलरों ने बेचे डीओ, धरमजयगढ़, लैलूंगा समेत अन्तिम दिनों में धान कमी की भरपाई करने खाद्य विभाग का कारगर फार्मूल

रायगढ़, मई। हर साल चुनिंदा उपार्जन केंद्रों में धान की कमी होती है और अंतिम दिनों में मौका परस्त राइस मिलर डीओ बेचकर प्रबंधकों से सेटिंग करते हैं। इस बार तो लूट मचाई गई है। राइस मिलरों ने अंतिम दिनों में धान कमी वाले केंद्रों से 2200 रुपए से लेकर 2600 रुपए प्रति क्विंटल तक की वसूली की है। बोगस खरीदी को बराबर करने का यह रायगढ़ का अपना फार्मूला है।रायगढ़ जिले में धान खरीदी एक बहुत बड़ा कारोबार है जिसकी छत्रछाया में अफसर, नेता, प्रबंधक, मिलर सभी फलते-फूलते हैं। इस बार तो चुनाव की वजह से आला अधिकारी व्यस्त रहे। उसी का फायदा उठाकर अधिकारियों ने कुछ मिलरों को लाखों का मुनाफा कमाकर दिया। धरमजयगढ़, लैलूंगा, पुसौर और घरघोड़ा की कुछ समितियों में धान की बोगस खरीदी सबसे ज्यादा होती है। अंतिम दिनों धान सिर्फ रिकॉर्ड में होता है, हकीकत में नहीं। जीरो शॉर्टेज करने का दबाव डालकर समिति प्रबंधकों को मजबूर किया जाता है कि वे राइस मिलरों से डील करें। इस बार भी यही हुआ। किसी भी तरह से बोगस खरीदी को वैध बनाने के लिए मिलरों से सेटिंग की गई। जो धान बकाया दिख रहा था, उसका डीओ पहले ही काटा जा चुका है। करीब सात केंद्रों में 38 हजार क्विंटल धान बाकी था। इस धान के निराकरण के लिए मिलरों और प्रबंधकों में डील करवाई गई। बताया जा रहा है कि मिलरों ने धान के डीओ के बदले 2200 रुपए से लेकर 2600 रुपए तक की मांग की। प्रबंधकों पर दो तरफा दबाव था इसलिए उनको भी प्रशासन के सामने झुकना पड़ा।

ऐसे हुई है सेटिंग
उदाहरण के लिए किसी समिति में करीब 2000 क्विंटल धान कम मिला। जिस-जिस मिलर को यहां का डीओ मिला था, उसने प्रबंधक से बात की। जिला मुख्यालय से प्रबंधक पर दबाव बनाया गया। प्रति क्विंटल करीब 2300 रुपए पर बात फाइनल की गई। मतलब समिति प्रबंधक की ओर से मिलरों को 46 लाख रुपए दिए गए। कुछ राशि दी गई तो कुछ बाद में दी जाएगी। इसके बदले मिलरों ने धान उठाव पूरा करने की जानकारी अपलोड कर दी। इस तरह बोगस खरीदी के बदले समिति प्रबंधक को 800 रुपए प्रति क्विंटल का लाभ हुआ।

समिति प्रबंधकों के अध्यक्ष और मिलर की भूमिका
रायगढ़ जिले में यह सिस्टम आम हो चुका है। खाद्य विभाग, मार्कफेड, अपेक्स बैंक और सहकारिता विभाग सभी इसी व्यवस्था के अनुसार चलते हैं। बोगस खरीदी में केवल समिति प्रबंधक का ही नहीं बल्कि सभी की हिस्सेदारी होती है। इस पर सख्त कार्रवाई नहीं करने की वजह से हर साल सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। इस डील को करवाने में समिति प्रबंधकों के अध्यक्ष और पुराने राइस मिलरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

Aslam Khan

मेरा नाम असलम खान है, मैं MaandPravah.com का संपादक हूँ। इस पोर्टल पर आप छत्तीसगढ़ सहित देश विदेश की ख़बरों को पढ़ सकते हैं।

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